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सोचो क्या सुरक्षित हैं हम?

फैलाकर गंदगी, बढ़ाकर प्रदूषण तंग हैं हम।

उठो, बढ़ो और कुछ काम करो,

मातृभूमि के वास्ते हम लिए हैं जनम।

सोचो क्या सुरक्षित हैं हम?

काटा पेड़ घर बनाने के वास्ते,

फिर बनाया घर ताकि रहेंगे हम।

आज पेड़ हैं तो हम हैं,

सोचो क्या सुरक्षित हैं हम?

स्वर्ग सी है अपनी धरती,

स्वर्ग ही रहेगी, खाएं आज ही कसम।

कूड़ा-कचरा सोचकर फेंको,

सोचो क्या सुरक्षित हैं हम।

आते हैं आंसू याद कर जुगनुओं को,

एक जगमगाते स्वर्ग से, उन्हें पकड़ते थे हम।

यह मतलबी इंसान ही है उनका पापी,

सोचो क्या सुरक्षित हैं हम?

कहाँ है ओ अलार्म कुकुडू… की,

जिनके बजने पर जगते थे हम।

अब इंसान, इंसान न रहा,

सोचो क्या सुरक्षित हैं हम?

गरीब हो या अमीर रोटी सबको भाती है,

भगवान रूपी किसानों पर थोड़ा करो रहम।

तुम्ही कुछ उद्धार करो राज आर्यन और,

सोचो क्या सुरक्षित हैं हम?

✍️ ब्यास राज आर्यन, सिवान, बिहार

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